होली हमारी सांस्कृतिक विरासत, यदि इसे प्रकृति और धार्मिक महत्व के साथ मनाया जाये तो इसका स्वरूप कुछ ओर होगा

अशोकनगर । नवदुनिया की ओर से चलाए जा रहे अभियान आओ जलाए कंडे की होली को लेकर अनेक लोगों से जब उनसे चर्चा की गई और होली के सांस्कृतिक मूल्यों को लेकर आने वाले दिनों में कंडे की होली को लेकर उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया में कहाकि नवदुनिया का यह अभियान समाज को एक नई दिशा देने वाला है। जागरूकता के लिए चलाया जा रहा यह अभियान सबके लिए प्रेरणादायी है। खुद भी हम कंडे की होली जलाए और अन्य लोगों को भी इस अभियान का हिस्सा बनाते हुए अधिक से अधिक कंडे की होली का ही उपयोग करे, यह प्रयास सबका हो।


स्थानीय गल्ला व्यापारी राजेश जैन ने कहाकि नवदुनिया की यह पहल सराहनीय है। होली हमारी सांस्कृतिक विरासत है लेकिन हम अपनी विरासत को बदले हुए परिवेश में प्रकृति को ध्यान में रखकर मनाए तो इसका महत्व कुछ ओर होगा। आज पेड कम हो रहे है और लकडी का उपयोग यदि होली में होगा तो पेडों का नुकसान होगा। पेडों को बचाने के लिए कंडे की होली का ही उपयोग होना चाहिए। इससे हम धार्मिक और सामाजिक महत्व के साथ प्रकृति को बचाने में सफल होंगे। प्रकृति की सुंदरता हरे-भरे पेडों से है। जितने पेड होंगे उतना वातावरण शुद्घ होगा।


 

व्यापारी सौरभ गुप्ता का कहना है कि सामाजिक जागरूकता के लिए पिछले 4 वर्षों से नवदुनिया ने यह अलख जगाई है। जिसका परिणाम सबके सामने है। अब कंडे की होली ही जलाई जाने लगी है। यह कंडे की होली अत्यंत उपयोगी है इससे पशुधन को बढाया जा सकेगा। कंडे का उपयोग अधिक से अधिक हो। होली के साथ-साथ जब भी शीतकाल के मौसम में अलाव जलाने की बात आती है उस समय भी यह ध्यान रखा जाये कि अलाव जलाने में लकडी का उपयोग न हो, कंडों का उपयोग किया जाये।


 

कृषि मशीनरी व्यवसायी संजय अग्रवाल ने कहाकि होली का त्यौहार रंगो की होली के लिए भी जाना जाता है। प्रकृति विभिन्न प्रकार के रंगों से सुशोभित है। इन रंगों में हमारी संस्कृतिक छिपी है। हर रंग अलग-अलग संदेश देते है। लेकिन जब यह रंग मिल जाते है तब 7 रंग मिलकर इंद्रधनुषी आभा विखेरते है। यह प्रकृति के रंग है। यदि हम इनका उपयोग होली के अवसर पर सूखे रंगों के रूप में करें तो उनका महत्व अलग है। अशोकनगर शहर की होली एक जलाने में बड़ी प्रसिद्घ रही है। होली के दिन रंगों से भरे कढ़ाये रखे जाते थे लेकिन अब वह नजर नहीं आते। न ही रंग पंचमी पर होली की गैर निकलती है। इन परम्पराओं को जिंदा रखने की सबकी जिम्मेदारी है लेकिन शालीनता और त्यौहार में बनी रहे।


ग्राम बायंगा निवासी मन्ना सिंह यादव अशोकनगर के वाशिंदे है। उन्होंने होली के बदलते स्वरूप को भी देखा है। रंगों की होली के मामले में उनका कहना है कि उनके समय जब होली होती थी तब मिल-जुलकर होली मनाई जाती थी। होली के दिनों में सब नाचते-गाते हुए ढ़ोलक की थाप पर शहर में होली मनाने निकलते थे लेकिन अब ऐसी होली मनाने वाले लोग नजर नहीं आते। होली का त्यौहार सदभाव एकता और भाईचारे का संदेश लेकर आता है जिसमें अर्थ छिपा है बुरा न मानो होली है। यदि हम इन शब्दों का इस्तेमाल करते हुए होली का त्यौहार मनाए तो रंगो की होली की पावनता और पवित्रता का मजा की कुछ होगा। फोटो43ए- राजेश जैन।


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