अशोकनगर । सुबह की सैर पर जाने वाले मॉर्निग वाक टीम के द्वारा कंडे की होली जलाने की शपथ ली गई। इस टीम में शामिल विभिन्न व्यापारियों और विभिन्न वर्ग के लोगों ने एक सुर से कहाकि कंडे की होली जलाना आज के समय की सबसे बड़ी जरूरत है। इसे नवदुनिया के द्वारा एक अभियान के रूप में पिछले कई वर्षों से चलाया जा रहा है। यह एक सराहनीय कदम है। इस बार हम भी कंडे की होली ही जलाएंगे और स्वयं भी लोगों को कंडे की होली जलाने के लिए प्रेरित करेंगे। इससे प्रकृति हरीभरी रहेगी, पेड नष्ट होंगे से बचेंगे और मूल्यवान लकड़ी को नष्ट होने से बचाया जा सकेगा।
मानवीय जीवन के लिए पर्यावरण को स्वच्छ रखना जरूरी
स्थानीय व्यापारी विनोद अग्रवाल ने नवदुनिया के द्वारा चलाए जाने वाले अभियान को लेकर कहाकि कंडे की होली जलाना चाहिए। यह आज की जरूरत है। इंसानी दुनिया को बचाने के लिए आसपास के वातावरण और पर्यावरण को साफ-सुथरा रखना अत्यंत आवश्यक है। यह जागृति अभियान को स्थायी अभियान के रूप में शासन को स्वीकार करना चाहिए। लकडी को जलाने के रूप में प्रयोग बंद किया जाना चाहिए। पेडों के लगातार कटने से जंगल नष्ट हो गए है। थोडे बहुत जंगल बचे है वह भी नष्ट हो जाएंगे। इसलिए इस बार होली पर लकडियों का उपयोग न कर कंडे की ही होली जलाये।
गोबर से निकलने वाली गैस अत्यंत उपयोगी
मैरिज गार्डन व्यवसायी जयप्रकाश अग्रवाल ने कहाकि गोबर से गैस निकलती है वह अत्यंत लाभदायक है। हमारी संस्कृति की हम रक्षा नहीं करेंगे तो कौन करेगा। संस्कृति हमसे है, हम संस्कृति को जिंदा रखेंगे तो संस्कृति को पहचान मिलती रहेगी। हमारी संस्कृति में जितना गायों को पूजा जाता है। उतना ही उनका गोबर उपयोगी होता है। होली की पवित्रता इसी में है कि हम कंडे की ही होली जलाये। इस होली में हम स्वयं भी कंडे का उपयोग करें और समाज से भी हम आव्हान करेंगे कि वह भी होली में कंडे का ही उपयोग करें।
एकदूसरे को कीचड़ व गोबर भी लगाते थे
रेडक्रास सोसायटी के पूर्व चेयरमैन हरवंश जुनेजा का कहना है कि पहले की होली अलग थी, आज की होली अलग है। अब होली में वो बात नहीं है जो बात पहले हुआ करती थी। सब मिलकर होली मनाते थे। खुशी से रंग लगाए जाते थे और खुशी से रंग लगवाते थे। बुराई-भलाई का सवाल ही नहीं उठता था। कीचड़ की होली भी होती थी, गोबर की होली भी होती थी लेकिन लोग बुरा नहीं मानते थे। उस समय जो लाल रंग होली पर चलता था उस लाल रंग का इस्तेमाल अब नहीं होता। उस रंग से कोई नुकसान नहीं होता था। अब रंग केमीकल वाले आने लगे है।
पलाश से रंग बनाकर खेलते थे होली
85 वर्षीय पेंशनर एसोसिएशन के अध्यक्ष अमरसिंह रघुवंशी का कहना है कि हमारे जमाने की होली अब सिर्फ याद की जाती है। न तो वह होली खेली जाती है और न दिखाई पड़ती है। होली का त्योहार अब यादों में खो गया है। उस समय होली के त्योहार के समय रंगों का इस्तेमाल पलाश का रंग बनाकर किया जाता था। उनके ग्राम पिपरेसरा में सामूहिक रूप से लोग बैठकर फाग गाते थे। खुशियां मनाई जाती थी। न कोई झगड़ा होता था। अब होली के दिनों में हम बीते दिनों की याद करते हैं। काश वह दिन लौट आएं।